एक अध्यापक का पत्र विधायकों के नाम

आदरणीय विधायकों नमस्कार,


मैं राजस्थान के उन सम्माननीय विधयाकों के समक्ष अपनी पीड़ा व्यक्त करना चाहता हूं जो पिछले महीने से बड़े होटलों में प्रतिबंधों के बीच रह रहे हैं. आप को जनता ने चुना है, आप पञ्च-परमेश्वर के पद पर स्थापित किये गए हैं. आप गाँधी, नेहरु, लाल बहादुर शास्त्री की विरासत के उत्तराधिकारी हैं. आप का सीधा सम्बन्ध महाराणा प्रताप और भामाशाह जैसे मनीषियों से ही नहीं, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस,, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद जैसे मनीषियों से जुड़ता है. राजस्थान साहस, त्याग, बलिदान, शौर्य, रक्षा, बचन की प्रतिबद्धता के लिए विश्व प्रसिद्ध है. आज घर घर यह चर्चा है कि यदि आप होटल से बाहर आकर अपने क्षेत्र में जायेंगें तो आप लालच के शिकार हो सकते हैं. क्या यह आप पर, आपकी निष्ठा पर और आप के चरित्र पर अस्वीकार्य लांछन नहीं है? क्या आपनें अपने परिवार के निकटतम संबंधियों से चर्चा की है? क्या आप के बच्चे इस स्थिति से दुखी नहीं हैं? मैनें जीवन भर बच्चों के साथ कार्य किया है. वे कभी गलत नहीं होते हैं. एकबार आप भी आजमाये, उनकी राय लीजिये.


आप अपने क्षेत्र के हर व्यक्ति के प्रतिनिधि हैं. राजस्थान कोरोंना -मुक्त नहीं है. जनता की राय में आपका होटलों का ठहराव ऐश्वर्यपूर्ण और शाह-खर्च माना जाता है. यह अन्य लोगों द्वारा प्रायोजित है. क्या इस वैश्विक आपदा के समय आप को आपने क्षेत्र में अपने लोगों के बीच में नहीं होना चाहिए? अपने अन्दर झांकिए और अपनी आत्मा से पूछिये. वही आप को सही दिशा देगी, उसका अनुसरण कर अपनी प्रतिष्ठा और साख बचाइये. इस तथ्य से आँख न मूंदें कि उस पर आंच आ रही है. और यह आंच गाँधी के सपनों के भारत को भी झुलसा रही है. आपने गाँधी जी का त्याग तो अभी तक नहीं किया है, फिर आप बंधक कैसे बन सकते हैं. अपनें आत्मसम्मान से विमुख कैसे हो सकते हैं. क्या आप को विश्वास नहीं है कि आप अपने लोगों के बीच रहकर भी हर लालच से अपने को बचा सकते हैं?


मैं एक सामान्य, सजग और सक्रिय अध्यापक हूँ. १९६२ से केवल पढ़ाने और पढ़ने का कार्य कर रहा हूँ. मैंने देश के निर्माण में लाखों अन्य अध्यापकों की तरह भाग लिया है. एक क्षेत्रीय संसथान के प्राचार्य, एनसीईआरटी और एनसीटीई के निदेशक और अध्यक्ष पद पर रहने के उपरांत देश के हर विद्यार्थी और अध्यापक से मैं जीवंत रूप से जुड़ा हूँ. आप से और आप के बच्चों से भी मैं जुड़ा हूँ. मैं दुखी और चिंतित हूँ, अपनी और आपकी भावी पीढ़ियों के लिए. इसी लिए आप को यह सब कहने का साहस कर रहा हूँ. देश भके भविष्य के लिए ऐसे उदाहरण का भाग मत बनें जो नैतिकता और ईमानदारी पर खरा न उतरता हों.


आप अपने मन-मानस से कभी इस आक्षेप को स्वीकार नहीं कर पा रहे होंगे कि आप को लालच से बचाने के लिए होटल में बंद कर दिया जाय! मुझे यह भी पता है कि कहीं न कहीं आप अपमान-बोध से घिरे हैं. होटल का रहन-सहन आप का सर ऊंचा नहीं कर रहा है, झुका रहा है. मुझे हर स्तर को जो भी व्यक्ति मिला है, इस प्रकरण से दुखी है. इस बंधक बनाने की प्रथा का इतना सामान्यीकरण हो गया है कि लोगों ने इसे नियति मान लिया है. यह चिंता का विषय है. आज यदि आप के होटल के कमरे में लाल बहादुर शास्त्री पहुँच जायं, तो क्या आप सर उठाकर उन्हें प्रणाम भी कर पायेंगे? जो कुछ हो रहा है, पहली बार नहीं हो रहा है, लेकिन जब जब यह होता है, स्वतंत्रता सेनानियों का घोर अपमान होता है, लोगोंका प्रजातंत्र पर विश्वास घटता है. आप में किसी की भी छवि सुधर नहीं रही है.


आपनें जो जनसेवा के कार्य किये हैं, जिनके आधार पर लोगों ने आप पर विश्वास किया है, वह भी ऐसे अवसरों पर नेपथ्य में चले जाते हैं. गाँधी के चित्र की ओर देखिये, जिन्होनें कहा था कि 'मेरा जीवन ही मेरा सन्देश है'! क्या आप यही अपने बच्चों से नहीं कहना चाहेंगे? और यदि कहना चाहते हों, तो अपने जीवन-लक्ष्यों को पुनः परिभाषित करने का साहस कीजिये. यदि भावी पीढियां नीतिगत आदर्शों पर चलनेवाले लोगों का उदाहरण अपने सामने नहीं देखेंगी, तो वे आदर्श मानवीय मूल्यों को कैसे अन्तर्निहित करेगी?


मुझे पूर्ण विश्वास है कि राजस्थान के जिस गौरवपूर्ण परिपेक्ष्य और वातावरण में आप बड़े हुए हैं उसका आप पर प्रभाव पड़ा है, अपने पुरखों और अध्यापकों को याद कीजिये, जिन्होनें आप को संस्कार दिए थे. आप उतने कमजोर नहीं हैं जितना आज सारे देश के समक्ष आप को प्रस्तुत किया जा रहा है. आप उस राजस्थान के हैं जिसनें विश्व को आत्म-गौरव का पाठ पढाने के लिए स्वामी विवेकानंद के अमेरिका जाने का प्रबंध किया था. जो स्वामी विवेकानंद हर युवक को शक्ति और साहस का पाठ पढ़ा गए, उन्हें याद कीजिये, उनसे पूछिए, और अपने विधान सभा क्षेत्र में जाकर दीनदुखियों की सेवा में लग जाईये. यदि आप यह साहस कर सके, तो आप नया इतिहास लिख देंगें, आगे से कोई राजनेता या दल जन-प्रतिनिधियों को यह बंधुआ बनाने का साहस नहीं करेगा. यह प्रथा समाप्त हो जायेगी. राजस्थान भारत में जनतंत्र की राजनीति की पुनर्स्थापना में देश को राह दिखा देगा!


आपका अपना 


जगमोहन सिंह राजपूत


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